स्वाद में जिसका मन फंस जाता है, उसको भक्ति का आनंद नहीं मिलता

मोरना। शुकतीर्थ स्थित हनुमतधाम में भागवत कथा को सुनाते हुए कथा व्यास विष्णुदत्त महाराज शास्त्री ने कहा कि ज्ञान और भक्ति कभी व्यर्थ नहीं जाते। मन बाहर बहुत घूमता है, इसलिए हमें हृदय में विराजमान प्रकाशमय नारायण का दर्शन नहीं होता। मन जब अंतर्मुखी और बाधिर हो जाता है, तब अंतकाल में सभी हृदय में प्रकाशमय परमात्मा का स्वतरू दर्शन हो जाता है।
धर्मनगरी शुकतीर्थ हनुमानधाम में स्वर्गीय रघुनाथ सहाय एवं कस्तूरी देवी की स्मृति में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में कथा व्यास ने कहा कि परमात्मा का दर्शन करने के बाद जो वासना में फंस जाता है, उसके जीवन का पतन होने लगता है। जो ज्ञानी, योगी, भक्ति को गौण मानते हैं, सेवा पूजा को गौण समझते हैं, ऐसे ज्ञानियों, योगियों को जीवन में अंतकाल में संसार का असली चित्र दिखाई पड़ता है। जीव जहां जाता है, वहां सुख समझता है और ममता करने लगता है। भक्ति का शत्रु स्वाद है। स्वाद में जिसका मन फंस जाता है, उसको भक्ति का आनंद नहीं मिलता। ज्ञान और भक्ति वैराग्य दृढ़ होते हैं। वैराग्य के बिना ज्ञान और भक्ति दृढ़ नहीं होते। कथा के आयोजन में कंवर सेन गोयल, पवन कुमार, संजय गोयल, अशोक कुमार, राजरापी, साक्षी, आरती, रितेश, तेजस आदि का योगदान रहा।